
शिवपुरी। शहर की साहित्यिक संस्था “बज्मे उर्दू“ की मासिक
काव्यगोष्ठी गत दिवस गाँधी सेवाश्रम में आयोजित की गई। काजी हमीद शोरिष की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई इस काव्य गोष्ठी का संचालन सत्तार षिवपुरी ने यह कहकर किया-
मैं उसका नाम लेकर बज्म का आगाज करता हूँ।
के जो कलियाँ खिलाता है, के जो सूरज उगाता है।।
तरही मिसरे पर डाॅ. संजय शाक्य लिखते है-
आँधियों ने तो सब मिटा डाला।
जल रहा है दिया गनीमत है।।
वहीं भगवान सिंह यादव लिखते है-
ना करो मोलभाव तुम इसमें।
प्यार है ये न के तिजारत है।।
वहीं मो. याकूव साबिर ने कहा-
कितनी अनमोल शै मुहब्बत है।
आदमी की अहम जरूरत है।।
सत्तार षिवपुरी को देखें-
ये मोहब्बत है दिल में रहती है।
दिल में इसकी बड़ी हिफाजत है।।
बज्म के सचिव रफीक इषरत कहते है-
दिल के आईने से मिला आखें।
जब में जानू के तुझमें हिम्मत है।।
रामकृष्ण मोर्य लिखते है-
ऐ खुदा तेरी ही इनाइत है।
पस जो है तेरी बदौलत है।।
इरशाद जालैानवी ने कहा-
दोस्तों के करम से डरता हूँ।
दोस्ती से मिली अदावत है।।
गैर तरह पर हास्य-व्यंग के कवि विनोद अलबेला लिखते है-
महगा हो गया तेल खेल में,मँहगी हो गई दालें।
चटनी के भी लाले पड़ गये क्या पीसें क्या खालें।।
आकाशवाणी षिवपुरी से आये राकेश सिंह लिखते हैं-
मैंने दिल अपना तेरे दिल से मिला रखा है।
ये जरूरी तो नहीं हाथ मिलाया जाये।।
वहीं शरद गोस्वामी ने तो यहाँ तक कह दिया-
रव्वा बें के सन्जबाग सजाने से क्या मिले।
दिल ही न मिले हाथ मिलाने से क्या मिले।।
साजिद अमन को देखें-
छोड़कर जो गये गरीबी में।
साथ होगें वो फिर अमीरी में।।
डाॅ. मुकेश अनुरागी लिखते है-
जख्म देने को हैं तैयार खड़े लोग यहाँ।
हर एक हाथ में मरहम यहाँ नहीं होता।।
बज्म के अध्यक्ष हाजी आफताब आलम ने मिटटी पर लिखी मशहूर बज्म पढ़ी जो बहुत सराही गई।
अध्यक्षीय उद्वोधन के बाद सत्तार षिवपुरी ने सभी साहित्यकारों का आभार प्रदर्षित कर शुक्रिया अदा किया।
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