शिवपुरी। बाल कल्याण समिति एवं अन्य बाल सरंक्षण संस्थाओं से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ताओं को किशोर न्याय अधिनियम के प्रविधानों के प्रति अतिशय सजगता का भाव सुनिश्चित करना चाहिए। यह कानून उन जरूरतमंद बालकों के कल्याण को तय करता है जिनकी नैतिक एवं विधिक जबाबदेही अंततः समाज की है। यह बात आज चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन की 71वीं ई कार्यशाला को संबोधित करते हुए फाउंडेशन के सचिव डॉ कृपाशंकर चौबे ने कही। उन्होनें कहा कि अक्सर इन संस्थाओं और निकायों से जुड़े लोग अपनी नियुक्तियों के बाद कानून की बारीकियों को समझने से परहेज करते है। इसके चलते उस पवित्र भावना के साथ न्याय नही हो पाता है। ई कार्यशाला में 13 राज्यों से जुड़े बाल अधिकार कार्यकर्ताओं को जेजे एक्ट के प्रथम एवं द्वितीय भाग की विस्तृत जानकारी दी गई।
डॉ. चौबे ने अधिनियम के तहत प्रावधित सीएनसीपी यानी आवश्यकता एवं सरंक्षण श्रेणी के बालकों की परिभाषा के व्यवहारिक पक्ष को बारीकी से समझाया गया। उन्होंने दत्तक ग्रहण, ग्रुप फोस्टर सहित अन्य तकनीकी पक्षों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने जोर देकर कहा कि समितियों एवं बोर्डों में कार्यरत सामाजिक कार्यकर्ताओं को अपनी सामाजिक जबाबदेही का भान अनिवार्यता होना चाहिये क्योंकि कानून में न्यायिक प्रक्रिया के साथ अशासकीय लोगों की भागीदारी का मूल उद्देश्य सुधारात्मक प्रक्रिया को समावेशी एवं प्रामाणिक बनाना ही है। द्वितीय सत्र को सीसीएफ़ के मीडिया हैड डॉ अजय खेमरिया ने संबोधित किया। उन्होंने इंटरनेट मीडिया के अनुप्रयोग की बारीकियों से प्रतिभागियों को अवगत कराया। डॉ. खेमरिया ने मीडिया और सूचना की ताकत को रेखांकित करते हुए मौजूदा दौर की चुनौती को विस्तार से विश्लेषित किया। सीसीएफ़ के सदस्य राजेंद्र सलूजा ने जानकारी दी कि रोटरी क्लब के सहयोग से फाउंडेशन आर्थिक रूप से कमजोर बालकों के ह्रदय के ऑपरेशन एवं आर्टिफिशियल लिंब उपलब्ध कराने की योजना पर काम कर रहा है। संचालन अनिल गौर ने किया। आभार राकेश अग्रवाल ने माना।
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