कोलारस। कोलारस जनपद पंचायत अंतर्गत आने वाली 68 ग्राम पंचायतों में से 25 प्रतिशत ग्राम पंचायतों का प्रतिनिधित्व आदिवासी सरपंचों के हाथों में है। जिसमें कुछ सरपंच तो ऐसे हैं जिनपर हस्ताक्षकर करना भी नहीं आता और कई ऐसे हैं जो हस्ताक्षर तो कर लेते हैं लेकिन उन पर हिंदी पढना भी नहीं आता। बस यहीं दबंग और माफिया किस्म के लोग उक्त पंचायतों को ठेके पर संचालित कर रहे हैं। इनका उददेश्य इन आदिवासी चेहरों के कंधो पर रखकर बंदूक चलाकर अपनी जेबें भरना है। जनपद पंचायत कोलारस के अंतर्गत लगभग 16 ग्राम पंचायतें आदिवासी आरक्षित हैं। इन ग्राम पंचायतों में एक संगठित गिरोह शासन की राशि खुर्द-बुर्द करने के लिए सुनियोजित रूप से सक्रिय हैं। इस अनैतिक गिरोहबंदी में नेतृत्व की भूमिका जनपद पंचायत के सभी सब इंजिनियर और सचिव तथा सहायक सचिव ठेके पर लिए हुए पंचायती चेहरों संचालित कर रहे हैं।
विगत 7 वर्ष के कार्यकाल में हर एक ग्राम पंचायत में 3 करोड़ से अधिकतम 5 करोड़ तक का कार्य संपादित हुआ है, लेकिन उक्त 25 प्रतिशत आरक्षित पंचायतों में इतनी बड़ी राशि का काम जमीन पर नजर नहीं आ रहा है। सरंपचों को तो यह पता ही नहीं है कि उसकी ग्राम पंचायत में शासन द्वारा कौन से काम कराए जा रहे हैं। उक्त ग्राम पंचायतों में ग्राम स्वराज अभियान की विचारधारा का दम घुटता नजर आ रहा है। कई सब इंजीनियरों ने तो इस प्रकार की ग्राम पंचायतों में अपनी साइलेंट भागीदारी कर रखी है। जिला पंचायत सीईओ एचपी वर्मा के निरीक्षण के अभाव में उक्त ग्राम पंचायतों में शासन की राशि जमकर खुर्द-बुर्द की जा रही है। यदि ग्राम पंचायतों में गुणवत्ताहीन कार्य होते हैं तो इसकी पूरी जवाबदेही जनपद पंचायत के तकनीकी रूप से दक्ष अमले सब इंजीनियरों की ही है। यदि ग्राम पंचायत में किसी भी निर्माण की राशि का गबन होता है या गुणवत्ताहीन काम होते हैं तो इसकी जिम्मेदारी भी अधिकारियों की ही बनती है। जनपद स्तर के अधिकारियों को जिले से सरंक्षण मिलता है जिसके कारण इन पर कार्रवाई नहीं होती और पंचायतों में विकास सिर्फ कागजी बन कर रह जाता है।
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