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बाल कल्याण समितियां से पॉक्सो कानून पर गंभीरता से अध्ययन करने पर जोर, पॉक्सो में दोषसिद्धि केवल 22%; यह चिंता का विषय- शेलार / Shivpuri News

शिवपुरी। बाल कल्याण समितियां पॉक्सो कानून का गंभीरतापूर्वक अध्ययन कर पीड़ित बालिकाओं के पुनर्वास एवं न्याय दिलाने में अपनी अग्रणी भूमिका का निर्वहन करें। देश में पॉक्सो से जुड़े प्रकरणों में दोषसिद्ध महज 22 प्रतिशत ही है जो एक गंभीर चुनौती है। यह चिंता रविवार को कानूनविद नवीन कुमार शेलार ने चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन की 79 वी ई कार्यशाला को संबोधित कर कही।कार्यशाला में फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ राघवेंद्र शर्मा ने भी शिरकत की। देश भर के एक दर्जन राज्यों के बाल अधिकार कार्यकर्ता भी इस आभासी मंच पर रविवार को जुड़े रहे।

श्री शेलार नेकहा कि पॉक्सो से जुड़े मामलों में पुलिस के साथ बाल कल्याण समितियों की भूमिका को भी बहुत संवेदनशील बनाया गया है। लेकिन आम अनुभव यही है कि देश भर में समितियों के सदस्य इस महती भूमिका को सुनिश्चित नहीं कर पा रहे है। उन्होंने कहा कि समितियों को चाहिए कि वह अपने कार्यक्षेत्र से संबद्ध सभीप्रकरणों की बारीकी से जानकारी लें और अगर पुलिस पॉक्सो के प्रावधानों के अनुरूप कार्रवाई नही कर रही है तो समितियां अपने विधिक अधिकार क्षेत्र का उपयोग करते हुए संबधित न्यायालय को इस आशय का पत्र लिखकर कार्रवाई का अनुरोध करें।उन्होंने जोर देकर कहा कि बाल हित की बुनियादी अवधारणा इस तरह के मामलों में भी सर्वोपरि है, इसलिए समितियों के सदस्यों को इस कानून की बारीकियों और भावना को गंभीरतापूर्वक समझना चाहिए।

पॉक्सो के बीसियों मामले में उचित पैरवी और प्रामाणिक जानकारी की अभाव में दोषसिद्ध तक नही पहुंच पाते: श्री शेलार ने इस बात पर अफसोस जताया कि बालिकाओं के यौन शोषण से जुड़े पॉक्सो के बीसियों मामले उचित पैरवी और प्रामाणिक जानकारी की अभाव में दोषसिद्ध तक नही पहुँच पाते, ऐसे मामलों में उच्च न्यायालयों की भूमिका भी हाल के दिनों में समावेशी नजर नही आई है। मुंबई उच्च न्यायालय के त्वचा से त्वचा सम्पर्क मामले की नजीर देते हुए उन्होंने बताया कि ऐसे मामलों की संख्या बहुत है जिनमें पॉक्सो के आरोपियों को आईपीसी के आरोपों में तब्दील कर मामलों का निपटारा किया गया है।श्री शेलार ने कहा कि देश में ऐसे प्रकरणों पर विमर्श तभी हो पाता है जब मामले मीडिया में आते है।

कार्यशाला को संबोधित करते हुए फाउंडेशन के सचिव डॉ कृपाशंकर चौबे ने कहा कि बाल कल्याण समिति को किशोर न्याय अधिनियम के साथ पॉक्सो,एमटीपी जैसे सह संबंधित कानूनों का विशद अध्ययन करना चाहिये क्योंकि बुनियादी रूप से पुनर्वास और बाल कल्याण का क्षेत्र बहुत ही व्यापक है।डॉ चौबे के अनुसार देश भर में घटित होने वाले घटनाक्रम,न्यायिक निर्णयों एवं संशोधनों से अधतन रहना बाल अधिकार कार्यकर्ताओं की दिनचर्या का अविभाज्य हिस्सा होना चाहिए।कार्यशाला के अंत में आभार प्रदर्शन फाउंडेशन कोर कमेटी सदस्य राकेश अग्रवाल ने व्यक्त किया।

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