@ अजयराज सक्सेना
शिवपुरी। राजनीति क्या कुछ नहीं करवाती। कभी जातिवाद की राजनीति करवाती है तो कभी जातिवाद की राजनीति के कारण मिले आरक्षण का लाभ लेने के लिए जातिवाद को गलत बताने के लिए मजबूर भी कर देती है। शिवपुरी जिले की करैरा विधानसभा सभा सीट से भाजपा के बागी प्रत्याशी पूर्व विधायक रमेश खटीक का हाल कुछ ऐसा ही है। भाजपा नेता एवं पूर्व विधायक रमेश खटीक करैरा से चुनाव लड़ना चाहते थे। करैरा सीट आरक्षित थी इसलिए रमेश खटीक एक बार प्रत्याशी बने और फिर विधायक भी बन गए। 2013 का चुनाव हार गए थे इसलिए दोबारा भाजपा ने टिकट नहीं दिया। टिकट न मिलने पर रमेश खटीक ने बगावत का ऐलान कर दिया। और सपाक्स पार्टी का दामन थाम कर चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू कर दी।
अब संकट यह था कि सपाक्स पार्टी तो जातिवाद के खिलाफ है। प्रमोशन में जाति के आधार पर आरक्षण, सरकारी नौकरियों एवं योजनाओं जातिवाद पर आधारित आरक्षण और एट्रोसिटी एक्ट में मोदी सरकार द्वारा किए गए संशोधन के खिलाफ उठे आंदोलन के कारण ही सपाक्स का जन्म हुआ। इधर रमेश खटीक खुद जातिवाद पर आधारित आरक्षण के कारण कद्दार नेता बन पाए। जातिवाद पर आधारित आरक्षण के कारण ही वो विधायक भी बने।
सपाक्स पार्टी ज्वाइन करने के बाद जब पत्रकारों ने उनसे सवाल किया तो खटीक बोले सपाक्स की विचारधारा बिल्कुल सही है। एससी-एसटी एक्ट के मामले में बिना जांच गिरफ्तारी पर रोक के मामले में सुप्रीमकोर्ट का फैसला बिल्कुल सही था। उन्होंने कहा कि वह जातिगत आरक्षण के भी विरोध में हैं। आरक्षण आर्थिक आधार पर होना चाहिए।
कहने का तात्पर्य यह है कि दल बदलते ही रमेश खटीक ने अपनी विचारधारा ही बदल डाली थी। खटीक चुनाव लड़े और हार गए। हार जाने के बाद वह भाजपा में दोबारा से वापस आ गए और जैसा राजनीति में होता है भाजपा में आते ही खटीक ने भाजपा के सुर में गाना गाना शुरू कर दिया।
भाजपा कार्यकर्ता बेस पार्टी है और भाजपा का कहना भी है कि कार्यकर्ता है तो भाजपा है। लेकिन एक दल बदलू को भाजपा ने दोबारा अपने परिवार में वापस लिया और इतना ही नहीं खटीक को पार्टी में बड़ा सम्मानीय पद भी दिया जा रहा है। यह उन कार्यकर्ताओं के ह्दय पर चोट है जो सालों से भाजपा के लिए दिन-रात एक कर काम कर रहे है। खटीक को पद दिए जाने के कारण भाजपा के कर्मठ और निष्ठावान कार्यकर्ताओं में विरोध के सुर फूट रहे हैं। भाजपा को इसका खामियाना आने वाले चुनावों में उठाना पड़ सकता है।
एक ऐसा व्यक्ति जो टिकट की लालसा लिए हुए भाजपा छोड़ दूसरी पार्टी से चुनाव लड़ा इतना ही नहीं पार्टी में जाते ही विचारधारा भी परिवर्तित कर दी। ऐसे व्यक्ति को दोबारा पार्टी में लेकर महत्वपूर्ण पद दिया जाना कहां तक उचित है। बीते दिनों घोषित हुई भाजपा की जिला कार्यकारिणी में उपाध्यक्ष जैसा महत्वपूर्ण दर्जा दे दिया। साथ ही इनके पुत्र ने भी चलती गाड़ी में एक युवती से बलात्कार किया था। जिसकी एफआईआर भी दर्ज की गई थी। और पिता रमेश खटीक के नाम पर धमकाया भी गया था अगर शिकायत की तो मारकर फिंकवा दूंगा , फिर भी सबसे बड़ी पार्टी भाजपा द्वारा खटीक को इतना बड़ा सम्मान देना सही है जो न तो पार्टी के हुए और ही आमजन के।
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