शिवपुरी। शहर क सफाई से लेकर जल प्रदाय तक सभी महत्वपूर्ण कार्य नगर पालिका के जिम्मे हैं। इसके लिए नगर पालिका ने 1600 से ज्यादा लोगों का भारी भरकम अमला है जिनके वेतन पर नगर पालिका हर महीने करीब 1.30 करोड़ रुपये खर्च करता है। इसके बाद भी जल प्रदाय से लेकर शहर की स्वच्छता तक बुरे हाल हैं। नगर पालिका के पास कागजों में तो बड़ा अमला है, लेकिन इनमें से जमीनी स्तर पर काम करने वाले कर्मचारी बहुत कम हैं क्योंकि अधिकांश अस्थाई कर्मचारियों की नियुक्तियां पूर्व अध्यक्ष ने मनमाने ढ़ंग से करते हुए इनमें बड़ा घोटाला किया है। पूर्व अध्यक्ष मुन्नाालाल कुशवाह ने और उनकी अध्यक्षीय कमेटी ने मिलकर महज 7 दिनों में ही 76 अस्थाई कर्मचारियों की नियुक्ति कर दी। करीब तीन पहले पहले नियुक्त हुए यह अस्थाई कर्मचारी अब नगर पालिका में डेरा डालकर बैठ गए हैं और हर माह तनखाह भी ले रहे हैं, लेकिन काम के नाम पर कुछ भी नहीं कर रहे हैं। आज भी यह कर्मचारी या तो पूर्व पार्षदों या फिर नगर पालिका के अधिकारियों के यहां अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इनकी नियुक्ति में शासन के निर्देशों की भी जमकर धज्जियां उड़ाई गई हैं और किसी तरह का विज्ञापन निकाले बिना इनकी नियुक्तियां कर दी गईं।
जाते-जाते भी 9 कर्मचारी कर गए नियुक्त, शासन के निर्देश हवा में उड़ाए
उल्लेखनीय है, कि कार्यकाल समाप्ति के ठीक पूर्व 17-12-19 को अध्यक्ष व अध्यक्षीय परिषद द्वारा संकल्प क्रमांक 371 द्वारा 9 व्यक्तियों को अस्थाई रूप से फिर नगर पालिका की नियुक्ति दी गई। जबकि मध्यप्रदेश शासन, नगरीय प्रशासन और विकास विभाग मंत्रालय भोपाल द्वारा पत्र क्रमांक एफ/4-51/2012/दिनांक 28.2.14 के द्वारा पारित निर्देश के परिक्षेप्य में यह निर्देश था कि उक्त अस्थाई कर्मचारियों की नियुक्ति पृथक विज्ञापन प्रकाशित कराकर अभ्यर्थियों की कार्यकुशलता एवं निकाय की आवश्यकता के आधार पर की जाएगी। अध्यक्ष व अध्यक्षीय परिषद द्वारा मंत्रालय से जारी निर्देशों का अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतू स्पष्ट रूप से उल्लंघन किया गया है। इस प्रकार भूतपूर्व अध्यक्ष एवं अध्यक्षीय परिषद द्वारा पांच वर्षों में कितनी अवैध नियुक्तियां की गईं यह जांच का विषय है।
पंप अटेंडर भी बने हुए हैं नपा पर बोझ, हर माह 20 लाख भुगतान
शहर में लगभग 615 ट्यूबेल हैं जिनके लिए नगर पालिका ने करीब 350 पंप अटेंडर नियुक्त किए हुए हैं। पंप अटेंडर नियुक्त करने के बाद भी अधिकांश ट्यूबबेल पर यह उपस्थित नहीं रहते हैं। यह सिर्फ नपा में अपना नाम दर्ज करा कर रह महीने हजारों रुपये का वेतन ले रहे हैं, जबकि पंप अटेंडर की जिम्मेदारी होती है कि मोटर के संचालन और रखरखाब का पूरा काम देखे। नगर पालिका में पंप अटेंडर के नाम पर अपने चहेतों को भर्ती कराने की परंपरा सालों से चली आ रही है। हर अध्यक्ष और पार्षद ने अपने-अपने कार्यकाल में मनमाने तरीकों से पंप अटेंडरों को नियुक्त कराया है। अब नगर पालिका को इन्हें हर महीने करीब 20 लाख रुपये की सैलरी देनी पड़ रही है।
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