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450 साल पुराने काली माता के मंदिर में आकर भर जाती है भक्तों की झोली / Kolaras News

कोलारस में स्थित है माता यह यह प्रसिद्ध ऐतिहासिक मंदिर, नगर की रक्षक हैं मां काली

कोलारस। कोलारस नगर के खार नीचे स्थित महाकाली का यह प्राचीन मंदिर अपने आप में बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है। सिद्धपीठ मां काली के मंदिर को कुछ लोग दयालु महाकाली भी बोलते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर की जगह साढ़े चार सौ साल पहले विकराल घना जंगल हुआ करता था। मंदिर की देखभाल राव परिवार पुराने समय से करता आ रहा है, तब यहां मां काली की छोटी सी मूर्ति थी। लोग जब भी यहां आते, मूर्ति की भी पूजा-अर्चना करते थे। फिर यहां जो लोग आते, उनकी मनोकामना भी पूरी होने लगी तो धीरे-धीरे भीड़ बढ़ने लगी।

कहा जाता है कि मां की पूजा-करने से आसुरी शक्तियां, टोने-टोटके दूर होने लगे तो इस मूर्ति के प्रति लोगों में अटूट श्रद्धा बन गई। करीब ढाई सौ साल पहले यहां इस मंदिर के भवन की स्थापना हुई। बुजुर्गों के अनुसार वर्षों पहले कोलारस नगर के आस -पास एक विशाल जंगल हुआ करता था। पारागढ़ (पथरीगढ़ के राजा) के किले के बाद बस कोलारस नगर हुआ करता था, जिसमे महाराजा के मंत्री रहा करते थे। इसमें आने-जाने के चार मुख्य द्वार थे, जो आज भी यथावत स्थित है। इसी प्राचीन समय में भी मां काली का स्थान स्थित था। शाम ढलते ही चारों मुख्य द्वारों को बंद कर दिया जाता था और साक्षात मां काली इसकी रक्षा किया करती थीं। बुजर्गो बताते हैं कि जब दशकों पहले क्षेत्र में महामारी फैली तो मां काली ने नगर के मुख्य चारों दरवाजों पर अपना रूप धारण कर उस विनाशकारी महामारी से नगरवासियों की रक्षा की। जब शहर विकसित हुआ तो उन्होंने जंगल में मां काली की इस मूर्ति को विलक्षण माना।

विशेष कामना के लिए बांधते हैं धागा

मंदिर की पुजारी बताते हैं कि प्रत्येक सप्तमी और चतुर्दशी को मां काली को श्रद्धालु चुनरी, श्रंगार का सामान और नारियल चढ़ाते हैं और उनके सामने दीपक जलाते हैं। कोई विशेष कामना हो तो यहां धागा भी बांधते हैं पूजा-अर्चना के बाद रात को आठ बजे ढोल-नगाड़ों के साथ होने वाली महाआरती में शामिल होते हैं। मान्यता है कि उन पर मां काली की कृपा होती है। नवरात्र में यहां भारी भीड़ उमड़ती है। नवरात्रों में मंदिर में मां काली का विशेष भव्य श्रंगार किया जाता है। इस दौरान यहां जवारे, रामायण और भागवत कथा भी होती है। सप्तमी, अष्टमी और नवमी पर मंगल आरती व भंडारा किया जाता है। मइया के दरबार में भैरों बाबा, ठाकुर बाबा, कुल देवी व अन्य देवी-देवताओं का स्थान भी स्थापित है।

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