ये फासले हमारे जो दिल के दर्मियां हैं
कुछ मुझ में खामियां हैं कुछ तुझ मेे खामियां हैं
महात्मा गांधी की पुण्य तिथि पर काव्य गोष्ठी
िशवपुरी। महात्मा गांधी की पुण्य तिथि पर आयोजित की गई बज्मे उर्दू की काव्य गोष्ठी शहर के व्यस्ततम मार्ग पर स्थित गाँधी सेवाश्रम में राम पंडित की अध्य़क्षता में सम्पन्न हुई। इस काव्य गोष्ठी का संचालन सत्तार षिवपुरी ने यह कह कर किया-
मैं उसका नाम लेकर बज्म का आगाज करता हूँ
के जो कलियाँ खिलाता है के जो सूरज उगाता है
साजिद अमन लिखते हैं-
एक ऐसा जहाँ बनायेंगे उलफतों से उसे सजायेंगें
नेक लागों से राफता होगा, गुल अमन के वहीं खिलायेंगे
वहीं मो. याकूब साबिर ने कहा-
ये फासले हमारे जो दिल के दर्मियां हैं
कुछ मुझ में खामियां हैं कुछ तुझ मेे खामियां हैं
इरषाद जालोनबी लिखते हैं-
इसके लिये लड़ेंगे सारे जहाँ से हम
करते बहुत मुहब्बत हिन्दोस्ताँ से हम
बज्म के अध्यक्ष लिखते हैं-
चाहतों ने जिन्दगी सँवारी है
नफरों में भला रखा क्या है
सत्तार षिवपुरी ने कहा-
बुढ़ापे में भी ये इन्सान कितने शोक करता है
कभी परफयूम मलता है कभी सुर्मा लगाता है
राधे श्याम परदेषी लिखते हैं-
ये गुनाह तुमने क्यूँ कर लिया
दामन मेरा खारों से भर दिया
भगवान सिंह यादव शराब को लेकर कहा-
मय ना तेरा हित करेगी बात सच्ची जान ले
पी न मय भगवान की ये सीख पक्की मान ले
बज्म के सचिव रफीक इषरत लिखते हैं-
बाँधा था एक धागे से गाँधी ने हिन्द को
कायम हो भाई चारा कहलाऐ इक समाज
फिरकों में बाँटने की है फिर सारी कोषिषें
गाँधी की सोच क्या थी, क्या हो रहा है आज
वहीं अध्यक्षता कर रहे राम पंडित ने कहा-
मृतक कौन है कोैन ही जीवित किस किस की हम नब्ज टटोलें
कंठ-कंठ तक भरे हुऐ हैं लगता है जी भर कर रो लें
अध्यक्षीय उदबोधन में उन्होने कहा हमें समाज में ऐसा स्वस्थ साहित्य परोसना चाहिये जिससे के समाज में भाई चारा हो सके। अंतः में सत्तार षिवपुरी ने सभी साहित्यकारों का आभार व्यक्त करते हुऐ शुक्रिया अदा किया।